घृणित नाटकीय मंच के पर्दों को हम उठाकर ही रहेंगे ! घृणित नाटकीय मंच के पर्दों को हम उठाकर ही रहेंगे !
स्वर्णिम पल तप कर अनुभव की भट्ठी में। स्वर्णिम पल तप कर अनुभव की भट्ठी में।
और तीस साल इंतजार कर रे कलम, सब्र कर। और तीस साल इंतजार कर रे कलम, सब्र कर।
चुप की जुबां चुप की जुबां
सम्मान मेरी तुम कब कर पाओगे। सम्मान मेरी तुम कब कर पाओगे।
तुम पर्वत से अड़े रहे अपने झूठे अभिमान में और मैं हवा सी कोमल उड़ती रही आसमान में तुम पर्वत से अड़े रहे अपने झूठे अभिमान में और मैं हवा सी कोमल उड़ती...